मन की वृत्ती (हिंदी)
मन की ये वृत्ति, बापु की पनाह ले,
रहे बापुचरणों में, नित्य सदा ॥१॥
प्रारब्ध लंगड़ा, ज्ञान भी बहरा,
कारण अंधा, ना रहें अब ये ॥२॥
अनिरुद्ध मेरे, कृपा तुम करो अब ,
प्रेम की ये धारा अब बहने दो ॥३॥
सदा घोष नाम का, खुशी से भरें हम,
झूमेंगे सन्तोष से, चरणों में तेरे ॥४॥
चरणसेवा की जो, निष्ठावान् भाव से,
पिपा भाग्यशाली, हुआ संसार में ॥५॥
मनाची ही वृत्ती (मराठी)
मनाची ही वृत्ती, जाई बापूपाशी,
राहो बापू चरणी नित्य सदा॥11||
लंगडे प्रारब्ध बहिरेच ज्ञान,
आंधळे कारण नुरो आता॥2||
अनिरुद्धराया कृपा करी आता,
प्रेमाच्या प्रवाहा वाहू देई||3||
सदा नामघोष आनंदे निर्भर,
डोलू समाधाने तुझ्या पायी॥4||
निष्ठावंत भावे सेविता चरण,
पिपा भाग्यवंत विश्वामाजी॥5||