भक्ति और विज्ञान के परस्परपूरक उपयोग के द्वारा विश्‍वकल्याण का, मानवकल्याण का मार्ग उद्घाटित होता है,

यह स्पष्ट कर बताते हुए दैनिक ‘प्रत्यक्ष’ में दिनांक १६-१२-२००५ को प्रकाशित हुए ‘आजची गरज’ (‘आज की ज़रूरत) इस अग्रलेखात सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु लिखते हैं  - 

‘विज्ञान और भक्ति एकदूसरे को कभी भी मारक तो साबित होंगे ही नहीं, बल्कि विज्ञान की संपन्नता से भक्तिवैभव बढ़ ही जायेगा और भक्तिसामर्थ्य से विज्ञान की संहारक शक्ति दुर्बल होकर, विधायक आविष्कार अधिक से अधिक ताकतवर बनेगा। विज्ञान की सहायता से भक्तिक्षेत्र की ग़लत धारणाएँ तथा कल्पनाएँ नष्ट हो जायेंगी और भक्ति के आधार से विज्ञान के ग़लत इस्तेमाल को रोका जा सकता है।

आधुनिक संहारक शस्त्र एक पल में सामूहिक संहार करते हैं; इसलिए उनका प्रतिकार करने के लिए हमें सामूहिक सहयोग, सामूहिक प्रेम और सामूहिक सहजीवन की कला सीखनी पड़ेगी और ऐसी अहिंस्त्र सामूहिक शक्ति केवल व्यक्तिगत तथा सामूहिक भक्ति में से ही उत्पन्न होगी।’ 

अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य ‣ अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य ‣ sadguru aniruddha bapu |aniruddha bapu |

विज्ञान और अध्यात्म इन दो शास्त्रों ने प्रस्तुत की हुई ‘शक्तिमय विश्‍व’ इस संकल्पना को स्पष्ट करते हुए ‘श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रन्थराज’ प्रथम खण्ड ‘सत्यप्रवेश’ में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध कहते हैं -

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‘वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि इन प्रोटॉन्स (Protons) का और इलेक्ट्रॉन्स (Electrons) का यदि अधिक से अधिक विभाजन करते गये, तो अन्त में केवल ‘चिद्‌अणू’ अथवा Monads बचते हैं (शक्ति के पुंज) और ये चिद्‌अणू उत्पन्न नहीं होते अथवा नष्ट भी नहीं होते। सारा विश्व यानी इन चिद्‌अणुओं का अर्थात् शक्तिबिंदुओं का अविनाशी फैलाव है।

और इसी कारण, समूचे विश्व पर, यहाँ तक कि लोहा, लकड़ी, पत्थर से लेकर मानव तक सर्वत्र इस मूल शक्ति का ही सूत्र कार्यरत है और यह सूत्र जिसका है, वही वह भगवन्त है।’

उसी तरह, दैनिक ‘प्रत्यक्ष’ में प्रकाशित होनेवाली ‘तुलसीपत्र’ अग्रलेखमालिका के अग्रलेख क्र. १६१० (दिनांक १४-०३-२०१९) में

विज्ञान और अध्यात्म इन दोनों शास्त्रों को मान्य होनेवाली ‘विश्‍व की स्पन्दरूप शक्तिमयता’

के बारे में बापु ने लिखा है।

सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापु) स्वयं डॉक्टर (एम. डी. - मेडिसीन, हृमॅटॉलॉजिस्ट) हैं

तथा उनके परिजन भी सायन्स की विभिन्न शाखाओं में उच्चशिक्षित उपाधिप्राप्त हैं।

सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापू) अपने प्रवचनों में विज्ञान के, वैज्ञानिकों के कई संदर्भ देते रहते हैं।

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विश्‍वविख्यात वैज्ञानिक निकोल टेसला और उनके संशोधनकार्य के बारे में श्रीहरिगुरुग्राम में २७ मार्च २०१४ के दिन किये प्रवचन में बापु ने सविस्तार जानकारी दी और उन्हीं के मार्गदर्शनानुसार ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ में निकोल टेसला के संशोधनकार्य के बारे में लेखमाला प्रकाशित की गयी।

विज्ञान और तंत्रज्ञान के विभिन्न विषयों पर स्वयं बापु ने सेमिनार्स लेकर नॅनो टेक्नॉलॉजी, क्लाऊड काँप्युटिंग, स्वार्म इंटेलिजन्स जैसे कई नये विषयों से अपने श्रद्धावान मित्रों को परिचित कराया।

साथ ही, अपने २५ सालों के प्रदीर्घ वैद्यकीय अनुभव के बलबूते पर डॉ. अनिरुद्ध जोशी ने  ’सेल्फ हेल्थ’ इस विषय पर ’अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स’ में १३ दिसम्बर २०१४ को सेमिनार कन्डक्ट किया, जिसमे हज़ारों जन उपस्थित थे।

‘श्रीमद्पुरुषार्थ’ ग्रन्थराज तृतीय खंड ‘आनन्दसाधना‘ में बापु लिखते हैं -

‘विज्ञान प्रगत होता ही रहेगा

और

उसका सर्वोच्च बिंदु भी ‘ईश्वर की अनुभूति’ यही होगा।’

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Aniruddha Premsagar
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