सम्राट समुद्रगुप्त ये पराक्रमी एवं रणनीतिनिपुण योद्धा तो थे ही, साथ ही वे श्रेष्ठ एवं कुशल शासक भी थे| उन्होंने जिते हुए प्रदेशों के सभी राजाओं को उनके राज्य सम्मानपूर्वक लौटाये, केवल समुद्रगुप्त की सार्वभौमता को मानने की शर्त पर| ऐसे हर एक सामंत राजा के यहॉं समुद्रगुप्त के अपने दूत होते थे और समुद्रगुप्त के दरबार में हर एक सामंत राजा का एक प्रतिनिधि होता था| हर एक राज्य की स्थिति के अनुसार समुद्रगुप्त के अधिकारी वार्षिक कर (टॅक्स) निश्चित करते थे, इस कारण सूखा, अतिवृष्टी आदि कारणों से भले ही कम कर प्राप्त हुआ हो, परन्तु उन मांडलिक (अधीन) राज्यों और सामंत राजाओं पर व्यर्थ भार नहीं होता था| साथ ही उन राज्यों के हर एक कठिन प्रसंग में समुद्रगुप्त उदारता से सहायता करते थे| इस कारण समुद्रगुप्त का यह अतिविशाल साम्राज्य लंबे समय तक कायम रह सका|
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