समुद्रगुप्त के बारे में लेख लिखकर पूरे किये और समुद्रगुप्त के बारे में एक आख्यायिका ज्ञात हुई। उसे लोककथा कहा जा सकता है, प्रत्यक्ष इतिहास नहीं कहा जा सकता, परन्तु मेरी राय में लोककथाओं को भी ऐतिहासिक खज़ाने की रक्षा का सूत्र होता ही है; दर असल लोककथा यह मूल ऐतिहासिक तने में उत्पन्न हुई शाखाएँ ही होती हैं।
एक बार सम्राट समुद्रगुप्त अपने परिवार के साथ समुद्रस्नान करने गये थे। ज़ाहिर है कि उनके साथ उनका लवाज़िमा भी था ही। समुद्रस्नान करते समय ही समुद्रगुप्त की अंजुलि में एक केकड़ा आ गया। समुद्रगुप्त ने उसे झटक दिया और वह केकड़ा समुद्रगुप्त के एक दास के गर्दन पर जाकर गिर गया। उस केकड़े ने उस दास की गर्दन को काट लिया। समुद्रगुप्त यह बात नहीं जानते थे। समुद्रस्नान होने के बाद सभी लोग विश्राम करने उनके तत्कालीन निवासस्थान लौट गये। राजपरिवार के लिए स्वादिष्ट भोजन लेकर दास आने लगे। समुद्रगुप्त के सामने झुककर भोजन परोसते समय उस दास की गर्दन पर हुए ज़ख्म को समुद्रगुप्त ने देखा और ज़़ख्म के बारे में पूछा। समुद्रगुप्त के उस दास ने समुद्रगुप्त से, उसकी गर्दन को पेड़ की टहनी लगकर ज़ख्म होने की बात कही; परन्तु समुद्रगुप्त के विदूषक ने राजा को सच्ची बात बतायी। खाना खाने के बाद समुद्रगुप्त ने उस दास को अपने दालान में बुलाया, स्वयं के खास राजवैद्य के द्वारा संपूर्ण उपचार करने की व्यवस्था की और उसे उसके वजन जितने सोने के सिक्के दिये। विदूषक यह देखकर अचंभित हो गया। सभी राजा का गुणगान करने लगे। अगले दिन एक बड़े जलाशय में नौका से विहार करते समय एक मगरमच्छ ने उस नौका पर हमला किया और नौका में बैठे समुद्रगुप्त के प्रमुख नाविक अधिकारी के हाथ का पंजा ही तोड दिया। जल्दी में समुद्रगुप्त ने नौका को वापस लौटाया। उसके (उस अधिकारी के) भी इलाज की व्यवस्था हो ही गयी। परन्तु उसके ठीक हो जाने के बाद समुद्रगुप्त द्वारा उसे छह महिने के कारावास की सज़ा सुनायी गयी।
सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष
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