अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य ‣ अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य ‣ सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध बापू । समर्थ इतिहास

अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य ‣ समुद्रगुप्त के कार्यकाल में वेग एवं बल प्राप्त हुआ एक सुंदर सांस्कृतिक प्रवाह था, नारदप्रणित भक्तिमार्ग का प्रवाह। स्वयं समुद्रगुप्त अत्यंत धार्मिक, श्रद्धावान और भक्तिसंगीत में रममाण होते थे। वे स्वयं भगवान विष्णु के उपासक थे, परन्तु इसके बावजूद भी उन्होंने उतने ही प्रेम से शिवमंदिरों का निर्माण किया और वे स्वयं भी शिवपूजन में सम्मिलित होते थे। उनकी पटरानी दत्तदेवी उत्तर भारतीय वैष्णव घराने से थीं, दूसरी रानी दिवादेवी कश्मीर के शैव घराने से थीं, वहीं, तीसरी प्रमुख रानी रंभादेवी दक्षिण भारत के कट्टर वैष्णव पंथ से थीं। साम्राज्य के सभी धार्मिक मामलों में धर्मपाल ये समुद्रगुप्त के मुख्य सलाहकार थे और वे ही सारे कुंडलाचार्यों के अधिपति भी थे। धार्मिक प्रशासकीय उत्तरदायित्व को धर्मपाल द्वारा अत्यधिक संतुलित वृत्ति से निभाया गया था और मंदिरों को सभी दृष्टि से सुंदर, पवित्र एवं समाज-अभिमुख बनाया गया था। रंभादेवी धार्मिक स्थलों में किये जाने वाले पूजन, उपासना और संकीर्तन इस विभाग को सँभालती थीं। समुद्रगुप्त ने रंभादेवी के अधिपत्य में विद्वान एवं भक्तिप्रधान उपासकों की एक ‘नारद सभा` की स्थापना की थी।

(क्रमशः)

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

Click here to read this editorial in Hindi 

author avatar
Aniruddha Premsagar

प्रातिक्रिया दे

Scroll to top