स्वयंभगवान त्रिविक्रम का सार्वभौम मंत्रगजर
रामा रामा आत्मारामा त्रिविक्रमा सद्गुरु समर्था ।
सद्गुरु समर्था त्रिविक्रमा आत्मारामा रामा रामा ॥
स्वयंभगवान के इस सार्वभौम मंत्रगजर से हम सभी परिचित हैं। दर असल हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ही हम श्रद्धावानों को इस सार्वभौम मंत्रगजर से परिचित करवाया है। आज शायद ही ऐसा कोई श्रद्धावान होगा, जो इस मंत्रगजर से अपरिचित होगा। यह मंत्रगजर सार्वभौम होने के कारण अपने आप में परिपूर्ण है ही; परन्तु आज हम इस मंत्रगजर की एक विशेषत देखते हैं।
यदि हम इस मंत्रगजर के हर एक शब्द को ध्यान से देखें तो हम समझ सकते हैं कि इसके हर एक शब्द में ‘र’ यह अक्षर है।
रामा - रा = र् + आ
रामा - रा = र् + आ
आत्मारामा - रा = र् + आ
त्रिविक्रमा - त्रि = त् + र् + इ
क्र = क् + र् + अ
सद्गुरु - रु = र् + उ
समर्था - र्था = र् + थ् + आ
जैसे कि हम जानते हैं कि चतुर्भुज श्रीराम यही स्वयंभगवान का स्व-रूप है और हम स्वयंभगवान के चित्र में इसे देख ही चुके है।
श्रीराम के नाम का पहला अक्षर ‘र’ यह है और मंत्रगजर के हर एक शब्द में यह ‘र’ अक्षर विद्यमान है।
|| हरि ॐ श्रीराम अंबज्ञ || || नाथसंविध् ||