उत्तर – प्रजापतिब्रह्मा, महाविष्णु और परमशिव ये तीनों रूप ये सहजशिव और जगदंबा के तीन पुत्र ही हैं और यह तुम भी जानते ही हो।
साथ ही इन तीनों के रूप और कार्य अलग होने के बावजूद भी इन तीनों का मूल रूप ॐकारस्वरूप परमात्मा यही है।
हर एक मनुष्य को उसके गत जन्मों के अनुभवों के अनुसार और कर्मों के अनुसार अगले जन्म में पसंद, नापसंद और चयन करना ये तीन बातें हर एक क्षेत्र के लिए अपने आप ही प्राप्त हो जाती हैं। इसी कारण किसी को कोई एक देवता पसंद होगा, वहीं किसी दूसरे को कोई दूसरा देवता अच्छा लगेगा और इस चण्डिकाकुल के सदस्यों के कई रूप जनमानस में दृढ हैं और उन सभी रूपों का प्रतिनिधित्व और केंद्रीकरण महाविष्णु और परमशिव तथा लक्ष्मी और पार्वती इनमें होता है।
क्योंकि इन दोनों की की गयी उपासना त्रि-नाथों तक ही जाकर पहुँचती है।
महाविष्णु के भक्तों की उपासना का स्वीकार महाविष्णु का ही रूप लेकर, परन्तु सहस्रबाहु धारण करके ‘नारायण’ इस नाम से सहजशिव करता है और जगदंबा ‘नारायणी’ रूप से करती है,
वहीं, परमशिव की उपासना का स्वीकार सहजशिव ‘महादेव’ इस नाम से और ‘सहस्रहस्त शिव’ के रूप में करता है और जगदंबा ‘शिवा’ और ‘महादेवी’ इन नामों से इसका स्वीकार करती है।
इन त्रि-नाथों की योजना के कारण अर्थात् नाथसंविध् के कारण भगवान के किसी भी रूप को माननेवाला भक्त त्रि-नाथों के आशीर्वाद से वंचित नहीं रह सकता।