उत्तर – ‘नाथसंविध्’ का अर्थ है, जगदंबा दुर्गा के द्वारा पूर्वजन्मों से अलग ऐसी इस नये जन्म के लिए बनायी गयी विशेष योजना।
नाथसंविध् अर्थात् यह जन्मयोजना अर्थात् इन तीन नाथबिंदुओं की इच्छा, प्रेम, करुणा, क्षमा और सामर्थ्य सहायता इन पंचविशेषों के द्वारा बनायी गयी संपूर्ण जीवन की रूपरेखा।
मानव इस रूपरेखा के अनुसार ही अपना जीवन व्यतीत करे इस उद्देश्य से वह एकमात्र भगवान त्रिविक्रम, मानव की श्रद्धा बलवान हो इसके लिए और उसके सद्गुणों का विकास करने के लिए निरंतर कार्य करता रहता है।
परन्तु इस रूपरेखा को मानव की कर्मस्वतंत्रता के आड़े नहीं आने दिया जाता। इस रूपरेखा का स्वीकार करने के लिए अथवा उसे नकारने के लिए मानव स्वतंत्र होता है।
परन्तु यह नाथसंविध् रूपरेखा ही मानव के लिए सबसे श्रेयस्कर (परमहितकारी) होती है।