६) ‘सत्य’ और ‘वास्तव’ इनमें फर्क क्या है?

उत्तर – जिससे सदा सर्वदा केवल पवित्रता एवं आनंद उत्पन्न होता है, वह सत्य है।

जिससे मानव को बहुत सुख मिल सकता है, परन्तु उससे पवित्रता उत्पन्न नहीं होती, वह है असत्य।

जिससे मनुष्य को पवित्रता की प्राप्ति होकर तात्कालिक सुख भी मिल जायेगा, किन्तु अन्य लोगों के लिए दुखदायक एवं परमेश्वर को आनंद देनेवाला नहीं है, तो वह भी असत्य ही है।

उदाहरण – एक व्यक्ति ने सदा ‘सच’ बोलने की क़सम खाई है और वह व्यक्ति अपने घर के आँगन में बैठा है। इतने में सामने से एक भयभीत युवती दौड़ते हुए आई और उससे बोली, ‘‘मुझे बचाओ। मुझपर बलात्कार करने के लिए कुछ गुंडे मेरे पीछे-पीछे दौड़ते हुए आ रहे हैं।’’ यह सुनकर उस व्यक्ति ने उस युवती को अपने घर में छिप जाने को कहा। उसका पीछा करते हुए वे गुंडे भी वहाँ आ पहुँचे और उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘वह लड़की जो यहाँ भागते हुए आई, वह कहाँ है?’’ इसपर उस व्यक्ति को क्या उत्तर देना चाहिए? सच बोलने की क़सम ली है, इसलिए ‘वास्तविकता’ बता देनी चाहिए? ‘‘हाँ, वह मेरे घर में छिपी है।’’ निश्‍चित ही इसका अर्थ ऐसा ही होगा, ‘‘आओ, यहाँ देखो यही है, इसपर बलात्कार करो।’’ ऐसा घटित होने पर, बोलना एवं करना ‘वास्तविकता’ के अनुसार तो होगा, परन्तु ‘सत्य’ के अनुसार नहीं होगा। क्योंकि इस आचरण से ना तो पवित्रता उत्पन्न होगी और ना ही आनंद, ना तो उस व्यक्ति के जीवन में, ना ही उस युवती के जीवन में और ना ही उन गुंडों के जीवन में।

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