उत्तर – स्वयंभगवान त्रिविक्रम श्रद्धावानों के जीवन में सदैव तीन स्तरों पर एक ही समय कार्यरत रहता है और तरल स्तर पर वह ‘आकाश’ महाभूत के माध्यम से ‘शब्द’ अर्थात् ‘विचार’ इस मार्ग से कार्यशील रहता है;
वहीं, सूक्ष्म स्तर पर यह त्रिविक्रम ‘वायु’ महाभूत के माध्यम से ‘स्पर्श’ अर्थात् ‘प्रेरणा’ इस मार्ग से कार्यरत रहता है;
इसी तरह स्थूल स्तर पर यह त्रिविक्रम ‘अग्नि’ महाभूत के माध्यम से ‘तेज’ अर्थात् ‘कार्य-उत्साह, कार्यशक्ति और कृतिसामर्थ्य’ मार्ग से कार्य करता है।