परमपूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापू ने ४ सितंबर २०१२ को, अधिक भाद्रपद मास की अंगारक संकष्ट चतुर्थी के दिन श्रीमूलार्क-गणेश की स्थापना श्रीअनिरुध्द गुरुक्षेत्रम् में की।
श्रीमूलार्क गणेश यह गणेशजी का अत्यन्त सिद्ध, दिव्य एवं स्वयंभू ऐसा स्वरूप माना जाता है। इन्हें मांदार-गणेश अथवा श्री श्वेतार्क-गणेश भी कहा जाता है। ऐसे इन श्रीमूलार्क-गणेश की सिद्धता के लिए, स्थापना के लिए आवश्यक रहने वाले सारे शास्त्रोक्त विधिविधान सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी के मार्गदर्शन के अनुसार संपन्न हो जाने के बाद ही श्रीमूलार्क-गणेश की स्थापना श्रीअनिरुध्द गुरुक्षेत्रम् में की गयी।
‘मैंने देखे हुए बापू’ इस पुस्तक में इस संदर्भ में जानकारी देते हुए पुरोहित श्री. अतुलजी महाजन लिखते हैं - ‘गुरुक्षेत्रम् में मांदार गणेश की जो स्थापना हुई है, उस गणपति की प्रतिष्ठापना की सारी जिम्मेदारी बापू ने मुझे और पाठक गुरुजी को सौंपी थी। मांदार गणेश क्या होते हैं? कैसे होते हैं? सब कुछ सुना था। रूई का पेड जब २१
साल का हो जाता है, तब उसकी जडों से उत्पन्न होनेवाले गणपति ही मांदार गणेश हैं। ये गणपति स्वयंसिद्ध होते हैं। यह मूर्ति जमीन से कैसे निकाली जाती है, इसकी कोई जानकारी नहीं थी। बापू से चर्चा करके यह जानकारी खोजी गई। सन २०१२ के पौष महीने की संकष्टी चतुर्थी के बाद गुरुवार के दिन यह मूर्ति जमीन से निकाली गयी। तत्पश्चात् निरंतर ११ महीनों तक विभिन्न प्रकार के अधिष्ठान कर, अष्टगंध में रखकर, तेल, घी में रखकर मूर्ति स्थापना के लिए सिद्ध की गयी।’
७ अप्रैल २०१६ के प्रवचन में मूलाधार चक्र का महत्त्व स्पष्ट करते हुए बापू ने बताया था कि हर एक के मूलाधार चक्र के स्वामी श्रीगणपति हैं। आहार, विहार, आचार और विचार ये चार दल रहने वाले मूलाधार चक्र के कार्य की रुकावटें मूलार्कगणेश की कृपा से दूर हो जाती हैं। विघ्नहर्ता मूलार्कगणेश की भक्ति करने से गृहस्थी-परमार्थ के अन्य विघ्न भी दूर हो जाते हैं और इस कारण श्रद्धावान की गृहस्थी-परमार्थ की प्रगति का मार्ग आसान हो जाता है।
दैनिक ‘प्रत्यक्ष’ के तुलसीपत्र अग्रलेखों में सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध लिखते हैं - ‘मूलार्कगणेश का मंत्रपठण करने से मानव की प्रज्ञा अर्थात् भगवान
के द्वारा दी गयी बुद्धि, मानव की बुद्धि और मन को नियन्त्रित करती है और श्रद्धावान को सारी आपत्तियों एवं गलतियों से मुक्त करती है।’
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी द्वारा दिये गये ‘ॐ गं गणपते श्रीमूलार्कगणपते वरवरद श्रीआधारगणेशाय नमः सर्वविघ्नान् नाशय सर्वसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।’ इस मूलार्कगणेश के मन्त्र का पठण बापू की आज्ञा के अनुसार ५ सितंबर २०१२ से श्रीअनिरुद्धगुरुक्षेत्रम् में किया जा रहा है।
श्रीअनिरुद्धगुरुक्षेत्रम् में आकर श्रीमूलार्कगणेश के दर्शन कर, उनकी कृपा सारे परिवार पर बनी रहे, सारे विघ्नों का निरसन हो जाये, मन पर बुद्धि का अंकुश रहे, आहार-विहार-आचार-विचार उत्तम रहें, अपत्यों का शैक्षणिक विकास हो ऐसी प्रार्थना श्रद्धावान मन:पूर्वक करते हैं।
मूलार्कगणेश के सान्निध्य में की गयी उपासना, प्रार्थना, उचित इच्छा अवश्य ही सुफलित हो जाती हैं ऐसी धारणा है।