उत्तर – सन्मार्ग पर चलते हुए व्यवहार करते रहना और इसी तरह व्यवहार करते करते अंतर्मन को धीरे-धीरे परमेश्वरी मन के प्रवेश के लिए खाली करते रहना ही अध्यात्म है; (और जीवन में अध्यात्म इस अंतिम ध्येय को साकार करने के लिए देहोपयोगी क्रिया सन्मार्ग से चलाना ही व्यवहार है)।
वहीं, अपने जीवन का प्रत्येक कार्य हम परमेश्वर के लिए कर रहे हैं और परमेश्वर को हमारी सभी बातें उसी क्षण ज्ञात हो जाती हैं, इस बात को ध्यान में रखकर जीना ही आध्यात्मिक जीवन है और यही मार्ग दर असल संतुष्टि, शान्ति एवं नित्यप्रसन्नता देनेवाला होता है।
सत्य, प्रेम, आनंद यही एकमात्र अध्यात्म की त्रिसूत्री है। वहीं भक्ति, सेवा एवं संस्कारों का शुद्धीकरण यही अध्यात्म के साधन हैं। व्यावहारिक जीवन जीते समय ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम और वानप्रस्थाश्रम अधिक सन्मार्ग से करना अर्थात् धर्म से अर्थ और काम इन पुरुषार्थों की प्राप्ति करना, यही आध्यात्मिक जीवन की पहली सफल सीढ़ी है और इस तरह गृहस्थी करते हुए सेवा और भक्ति का अवलंबन करके स्वयं का अधिक शुद्धीकरण करके बदलाव लाना यह अध्यात्मवाद की दूसरी सफल सीढ़ी है।