१२) ‘कर्मस्वतन्त्रता’ यानी क्या?

उत्तर – प्रत्येक मानव के अन्तर्मन में सभी प्रकार के बीज होते ही हैं। अच्छे एवं बुरे, शुद्ध एवं अशुद्ध ऐसे दोनों प्रकार के बीज एक साथ निवास करते हैं। उनमें से कौन सा बीज कब उगेगा और बढ़ने लगेगा यह हमारे प्रारब्ध पर निर्भर करता है,

परन्तु उगे हुए कौन से पौधे को बढ़ने देना है और कौन से पौधे को जड़-मूल के साथ नष्ट हो जाने तक काटते रहना है, यह मेरे हाथ में होता है। इसी को ‘कर्मस्वतन्त्रता’ कहते हैं।

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