उत्तर – ‘नमस्कार करना’ यानी केवल हाथ जोड़ना नहीं, बल्कि मन को ग़लत दिशा से उचित दिशा में मोड़ना।
मन तो अति चंचल एवं अत्यंत विशाल है। उसे खोजना बहुत कठिन है।
‘मन:’ का विरोधि शब्द है ‘नम:’। केवल हाथ जोड़कर प्रणाम करना यह नमस्कार नहीं है, बल्कि मन को ग़लत दिशा से उचित दिशा में मोड़ना ही नमस्कार है।
‘मन’ और ‘नम’ इन दो शब्दों के बीच स्थित है, ‘नाम’ यह शब्द। मन को उचित दिशा देनेवाला ‘उत्प्रेरक’ (catalyst) है ‘नाम’, तो अनुचित दिशा देनेवाला उत्प्रेरक (catalyst) है ‘मान’ (अहंकार)।
मेरे जीवन की ‘धारा’ (मन) मुझे विपरीत दिशा में मोड़कर ‘धारा’ को ‘राधा’ बनाना चाहिए।
और ‘राधा’ यानी क्या? शुद्ध, निष्काम और एकनिष्ठ भक्ति।
‘राधा’ अर्थात् ‘ह्लादिनी’… आह्लादिनी शक्ति। जीवन को आह्लाद-दायक बनानेवाली परमेश्वर की ‘प्रेमशक्ति’।