१९) ॐकार, रामनाम और त्रिविक्रम इनमें अन्योन्य संबंध क्या है?

उत्तर – ॐ यह एकाक्षर मंत्र (एक अक्षरवाला मंत्र) जिस तरह त्रि-नाथों के सामर्थ्य से युक्त है, वह विश्‍व के प्राकट्य का मूल बीज है,

उसी तरह ‘राम’-नाम यह त्रि-नाथों का एकत्रित अस्तित्व धारण करनेवाला सर्वश्रेष्ठ मंत्र है। इसमें स्थित ‘रं’ का अर्थ है अग्नि अर्थात् सहजशिव, ‘आ’ अर्थात् मूल दैवी प्रकाश अर्थात् सच्चिदानंद, ‘आ’नंदबीज और ‘म’ यह आदिमाता का बीज (षोमबीज) है।

इसी कारण राम इस नाम का महाविष्णु के द्वारा अभिमान धारण कर रामजन्म होनेवाला है, फिर भी ‘राम’ नाम संपूर्ण त्रि-नाथ कुल के सभी बीजमंत्रों को अपने उदर में धारण करता है।

दत्तगुरु और इसी कारण सहजशिव और जगदंबा को ‘राम’ यह नाम सबसे ज्यादा प्रिय है।

राम नाम में ‘रा’ रूप से सहजशिव का सामर्थ्य अर्थात् पितृत्व-सामर्थ्य और ‘म’ रूप से जगदंबा का सामर्थ्य अर्थात् मातृत्व-सामर्थ्य हर एक के लिए, हर एक श्रद्धावान के लिए उसे आवश्यक उतने प्रमाण में रहता है।

इस राम नाम का वहन स्वयं हनुमानजी करते हैं और इसी रामनाम के शरीर को त्रिविक्रम धारण करता है।

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