उत्तर – जब जब श्रद्धावान विरुद्ध (बनाम) श्रद्धाहीन ऐसी परिस्थिति होती है, तब तब श्रीत्रिविक्रम केवल श्रद्धावानों की ही सहायता करता है।
परन्तु जब श्रद्धाहीनों के बीच आपस में ही अन्तर्गत संघर्ष शुरू होता है, तब यही श्रीत्रिविक्रम उनमें से जो गुट केवल अज्ञानवश श्रद्धाहीन बन गया है, उसके पीछे खड़ा रहता है और पहले उन्हें श्रद्धावान बनाकर फिर उन्हें विजयी बनाता है।
इस तरह श्रीत्रिविक्रम केवल श्रद्धावानों को ही विजयी बनाता है और अत एव उसे ‘श्रद्धावानों का कैवारी’ कहा जाता है।