२९) स्वयंभगवान त्रिविक्रम के सार्वभौम मंत्रगजर के प्रथमार्ध और द्वितीयार्ध का अर्थ क्या है?

उत्तर – इस सार्वभौम मंत्रगजर का प्रथमार्ध है, श्रद्धावान के द्वारा भगवान त्रिविक्रम और त्रि-नाथों से की गयी प्रार्थना और इस सार्वभौम मंत्रगजर का द्वितीयार्ध है, भगवान त्रिविक्रम से श्रद्धावानों के लिए आनेवाली कृपा का स्रोत अर्थात् प्रसाद। यह मंत्रगजर सार्वभौम है। क्योंकि यह एकमात्र अद्वितीय ऐसा परिपूर्ण मंत्र है। जहाँ से इस मंत्र का आरंभ होता है, वहीं पर आकर यह ठहर जाता है – अर्थात् वर्तुल पूरा हो जाता है।

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