१६) इस विश्‍व की उत्पत्ति कैसे हुई?

उत्तर – परब्रह्म परमेश्‍वर दत्तगुरु के ‘एकोऽस्मि बहुस्याम्’ इस आद्य स्फुरण से यानी इच्छा से यह विश्‍व उत्पन्न हुआ और उनके इस संकल्प के साथ ही वे परमेश्‍वर स्वयं ही ‘श्रीमन्नारायण’ अर्थात् ‘श्रीमहादुर्गेश्‍वर’ बन गये और उनकी इच्छा ही आदिमाता गायत्री, जगदंबा, चण्डिका बन गयी। लीलाधारी परमेश्‍वर स्वयं की लीला से ही इस विश्‍व की उत्पत्ति करते हैं, स्व-लीला से ही वे इस विश्‍व का संचालन करते हैं और अपनी लीला से ही वे इस विश्‍व का स्वयं में लय करते हैं।

परमेश्‍वर दत्तगुरु की इस लीलाशक्ति को ही ‘ललिता’ कहा जाता है। आदिमाता जगदंबा ललिता ही परमेश्‍वर की आद्यलीला है, प्रथमलीला है। यही इन परमपिता दत्तगुरु की,  नित्यशिव की नित्यलीला है। यही इन महाकामेश्‍वर की आद्य कामना है।

ललिता ही आदिविद्या, शुद्धविद्या, पराशक्ती, चण्डिका, महादुर्गा, श्रीविद्या है। परमेश्‍वर ‘श्रीमन्नारायण’ है, तो परमेश्‍वरी ‘नारायणी’ है; परमेश्‍वर ‘महादुर्गेश्‍वर’ है, तो ये ‘महादुर्गा’ है;  परमेश्‍वर ‘महाकामेश्‍वर’ है, तो यह ललिता ‘महाकामेश्‍वरी कामकला’ है।

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