THE DEVOTION SENTIENCE (BHAKTIBHAV CHAITANYA)
means entrusting myself with love to the Swayambhagwan Trivikram (The Supreme Personality of Godhead), and cherishing the consciousness and awareness that He is with me always, every moment certainly. Which in fact The Bhagwatdnyan– true knowledge about the Bhagwanta and The Bhagwatbhaan – true awareness and consciousness about the Bhagwanta and His active presence in my life
अनिरुद्ध भक्तिभाव चैतन्य लेटेस्ट पोस्ट
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सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने। (हिंदी डबिंग)
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श्रद्धावान के जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण वाक्य – सद्गुरू श्री अनिरुद्ध बापू (हिन्दी डब)
सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू का परिचय
‘अध्यात्म’
यह शब्द सुनकर कई बार आम इन्सान की स्थिति ‘साधासुधा जीव अध्यात्म कळेना, घाबरून राही दूर दूर’ (भोलाभाला जीव, न समझे अध्यात्म, रहे डरकर दूर दूर) ऐसी होती है। आम इन्सान के मन में होनेवाले अध्यात्मविषयक भय को दूर कर, भक्ति के बारे में होनेवालीं ग़लतफ़हमियों को दूर कर, ‘भगवान के भक्तिभाव चैतन्य' में रहकर हर कोई भगवान के सामिप्य की प्राप्ति कर सकता है’ यह विश्वास दृढ़ करने का तथा सादे-सरल शब्दों में भक्तिविषयक मार्गदर्शन करने का चे कार्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध (बापु) अपनी वाणी, लेखनी तथा आचरण के माध्यम से कर रहे हैं।
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापु) स्वयं डॉक्टर (एम. डी. - मेडिसीन, हृमॅटॉलॉजिस्ट) हैं तथा उनके परिजन भी सायन्स की विभिन्न शाखाओं में उच्चशिक्षित उपाधिप्राप्त हैं। सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापू) अपने प्रवचनों में विज्ञान के, वैज्ञानिकों के कई संदर्भ देते रहते हैं।
परमेश्वर दत्तगुरु और आदिमाता जगदंबा के भक्तिभाव चैतन्य में निरन्तर रहनेवाले सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापु (डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी) ने इसवीसन १९९६ से विष्णुसहस्रनाम, ललितासहस्रनाम, राधासहस्रनाम, रामरक्षा, श्रीसाईसच्चरित ऐसे कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर प्रवचन करना शुरू किया। दुनियाभर के अनगिनत श्रद्धावानों के लिए बापु ‘सद्गुरु’ स्थान में हैं। स्वयं एक आदर्श गृहस्थाश्रमी होनेवाले बापु, गृहस्थी में रहकर भी परमार्थ की प्राप्ति की जा सकती है, यह स्वयं के आचरण से सीखाते हैं।
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी के जीवनप्रवास में एक बात ‘नित्य’, ‘शाश्वत’ है और वह है - ‘बापु तथा बापु का बिना लाभ के प्रेम’। इस बिना लाभ के प्रेम के कारण ही बापु ने अपने श्रद्धावान मित्रों के लिए ‘स्वस्तिक्षेम तपश्चर्या’ की। आध्यात्मिक आधार मज़बूत होने हेतु नियमित रूप से उपासना करते रहना मानव के लिए आवश्यक है; लेकिन आज के भागदौड़भरे जीवन में सदैव सता रहीं चिन्ताओं के कारण, हर एक से वे उपासनाएँ नित्यनियमित रूप में होती ही हैं ऐसा नहीं। अपने श्रद्धावान मित्रों के जीवन में होनेवाली इस कमी को पहचानकर, उस कमी को पूरा करने के लिए सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने सन २०११ की आश्विन नवरात्रि के आरंभ से यानी २८ सितम्बर २०११ से स्वस्तिक्षेम तपश्चर्या की शुरुआत की।
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