१) ‘भक्ति’ और ‘भाव’ यानी निश्चित रूप में क्या है?

उत्तर – भक्ति अर्थात् अत्यन्त प्रेमपूर्वक किया परमेश्वर का स्मरण, दर्शन, गुणगान, निःस्वार्थ सेवा और सत्य, प्रेम एवं आनंद इन परमेश्वरी तत्त्वों को अपने जीवन में उतारनेके लिए किये गये सभी प्रकार के परिश्रम।
भज्-सेवायाम् – भज् धातु का अर्थ ही मूलत: प्रेमपूर्वक सेवा यह है।
मैं अपने परमेश्वर की अत्यन्त श्रद्धा से जो सेवा करता हूँ, वही भक्ति है।
इसी का अर्थ है भक्ति अर्थात् परमेश्वर से प्रेम करना और परमेश्वर की ही ऐसी अनगिनत संतानें, जो बदक़िस्मती की मारी हैं, उनकी सेवा करना।
परमेश्वर का प्रेम प्राप्त करने का मार्ग ही भक्ति है।
भक्ति यानी ‘भाव’ यह हृदय होनेवाली, नित्य वृद्धिंगत होनेवाली, अंतरंगी प्रेमशक्ति और सस्नेह सेवा है।
धर्मपालन, स्वकर्तव्यपालन और ये बातें करते हुए सातत्यपूर्वक बनाये रखा और दृढ़ होते जानेवाला स्वयंभगवान के अस्तित्व का एहसास ही परिपूर्ण भक्ति है।
वहीं, ‘भाव’ यानी अन्तःकरण में उमड़ी हुई भावना।

Scroll to top