सदगुरु श्री अनिरुद्ध पितृवचन

नामस्पर्श ( गुरुवार, दिनांक १८ एप्रैल २०१९)

हरि ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ.

नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌.

कुछ दिन पहले हम लोगों ने नामस्पर्श सिखा था, राईट? याद है? तो कितने लोग कर रहे हैं? हर रोज कर रहे है ऐसा नहीं कह रहा हूँ। [लोग हाथ उपर उठाते हैं] इतने ही, बस्स? हम लोग नामस्पर्श की महिमा तब तक नहीं जान सकते, जब तक हम नामस्पर्श पाते नहीं। मैंने बार-बार कहा है, ‘नाम’ और ‘नामी’ इनमें श्रेष्ठ ‘नामी’ होता है या ‘नाम’ होता है? नाम ‘नामी’ से श्रेष्ठ होता है। नाम से ही नामी मिलता है, यानी भगवान मिलता हैं।

नाम को स्पर्श करना यानी नामी का स्पर्श पाना यानी भगवान का स्पर्श पाना होता हैं। आप बोलेंगे, ‘बापू, ऐसा सिर्फ हवा में हाथ हिलाकर जो स्पर्श हमें मिलता हैं, is it God's touch?’ YES it is, it is, it is....ऐसा ही है| कैसे? तो बताया, यह पूरा आकाश जो है, the Space, हमारे आजुबाजू में जो हवा है, अवकाश है, आकाश है, ये सभी उसके ही रूप हैं। ऊपर जो वायु है, वह महाप्राण का पिता है, हनुमानजी के पिता हैं वायुदेव। हमारी रामनाम नोटबुक जो है, वहाँ भी हम कहाँ लिखते है? हर पेज पर किसका चित्र है? हनुमानजी का चित्र है।

तो हम जब यह आकाशस्पर्श, नामस्पर्श करते हैं, वह आकाश मे करते है, अवकाश में करते है यानी हम किसपर लिख रहे हैं? हनुमानजी पर लिख रहे हैं, पवनदेव पर यानी वायुदेव पर लिख रहे हैं और आकाश में लिख रहे हैं। अब आप कहेंगे, ‘बापू, इस स्पर्श की बात कैसी? हम लोगों को कुछ स्पर्श मिलता नहीं।’ नहीं....मिलता है। क्योंकि यह आकाश हमसे बहुत प्यार करता है....बहुत प्यार करता है। हम जान नहीं सकते इतना प्यार करता है। हम किसी भी जगह पर हो, कहीं भी हो, wherever we are, आकाश हमारे साथ रहता ही है। बाकी कोई हो ना हो, आकाश तो होता ही है, राईट?

अब हाथ से क्यों? उंगली से क्यों नहीं? तो दूसरा भी एक प्रकार मैंने बताया था - अपने बायें हाथ पर, अपनी इस दाहिने हाथ की ऊंगली से लिखना है। लेकिन यह जो हम हवा मे लिखते हैं, उसका महत्त्व सबसे ज़्यादा है। क्यो? क्योंकि हमारे प्राणमय देह में जो १०८ शक्तिकेंद्र होते हैं, उनके सारे के सारे यानी १०८ रिप्रेझेंटेटिव्ज़्, प्रातिनिधिक तत्त्व हमारे इन दो हाथों में होते हैं। दोनों हाथों में १०८-१०८। अगर हम Right Hand इस्तमाल करेंगे, तो Right Hand भी ज़्यादा पॉवरफुल होगा, अगर Left Hand इस्तमाल करेंगे, तो Left Hand भी पॉवरफुल होगा।

So जब यह नाम लिखा जाता है इन हाथों से, तो उनमें होनेवाले सारे के सारे १०८ शक्तिकेंद्रों के प्रातिनिधिक तत्त्व प्रेरित हो जाते हैं, Stimulate हो जाते हैं, कार्यशील हो जाते हैं, कार्यरत हो जाते हैं; और इसके आड़े कुछ भी नहीं आता। We are directly getting connected to HIM. हम ‘उस’के साथ Directly connect हो जाते हैं, जुड़ जाते हैं। किसके साथ? उस भगवान के साथ, स्वयंभगवान के साथ, त्रिविक्रम के साथ, रामनाम के साथ।

आप अगर दुसरा कुछ नाम लिखना चाहें, वह भी लिख सकते हैं; लेकिन वह भगवान का नाम होना चाहिए, अपनी माशुका का नाम लिखकर कुछ उपयोग नहीं, फायदा नहीं होगा। लेकिन रामनाम एक ऐसी बहुत ही अलग चीज़ है, जिसकी महिमा गाते-गाते ये सारे संत-ऋषि थक गये, इतनी अगाध महिमा है इस नाम की! इसीलिये हम लोगों ने रामनाम चुना है, पहले से ही चुना है, राईट?

रामनाम लिखने की आदत करो। रामनाम की नोटबुक लिखते हो, वैसा ही यह नामस्पर्श इस माध्यम से; नहीं तो अपने हाथ पर, नहीं तो अपने दिल पर हाथ रखकर। बहुत लोक सोचते रहते हैं कि दिल पर एक हाथ रखना है या दो हाथ रखने हैं; दोनों बाजु में हाथ रखना है, एक हाथ दिल पर रखना है, ज़ोर से कहना है, छोटी आवाज़ मे बोलना है, दूसरा हाथ सिर पर रखना है? ऐसी कुछ बात नहीं है। अपना एक हाथ अपने दिल पर रखना है, बस्स्! और ‘राम’, ‘राम’, ‘राम’ बोलते रहना है। लेकिन अगर हाथ यहाँ रख रहे हैं, (मुँह से) राम, राम बोल रहे हैं, लेकिन मुव्ही किसी हिरो-हिरोईन की देख रहे हैं, तो क्या होगा? फ़ायदा होगा, तब भी होगा, लेकिन कम होगा।

जैसे आप बाजार में गये, आप को कुछ खरीदना है। समझो सब्जी खरीदनी है और आप फिशमार्केट में चले गये और आपका ध्यान नहीं हैं, क्या उठा रहे हैं, कितने पैसे दे रहे हो; तो क्या होगा? (सब्ज़ी की जगह) मछली घर आयेगी। या मछली लानी है और सब्ज़ीमंडी में गये, तो क्या होगा? सब्ज़ी घर आयेगी। वैसे ही, मानो आपकी तबियत ठीक नहीं है, आप दवा लेने के लिये डॉक्टर के पास गये। अब डॉक्टर दवा क्या बता रहा है, कैसी लेनी है, इसकी ओर आपका ध्यान नहीं है। घर आने के बाद आपने पूरी बॉटल पी ली, तो क्या होगा?

इसका मतलब क्या है कि सब जगह ध्यान होना बहुत आवश्यक होता हैं। मैं यह नहीं बात करता कि तुम्हारा पूरा Concentration होना चाहिये, मन पूरा एकाग्र होना चाहिये। कोई आवश्यकता नहीं। At least शुरू शुरू में तो, हाथ रखा है, ‘राम’, ‘राम’, ‘राम’ बोल रहे हैं, तो feel करो, इधर क्या होता है? दस हज़ार बार करो या एक बार करो, महसूस करना बहुत आवश्यक है।

और बात ऐसी है कि इस नामस्पर्श की शुरूआत किसने की? किसको पता हैं? मैंने पंढरपूर की भावयात्रा में बताया था....जो लोग वहाँ थे, कितने लोग थे? कोई हैं? [लोग हाथ ऊपर उठाते हैं] इतने सारे लोग....माय, माय, माय!

तुमको याद है वह कालिया नाग बनाया था और उस कालिया मर्दन किया था, ओ.के.? उसके आखिर में एक बात कही थी, क्या?

‘अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जन: पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥’

और दूसरा कौनसा श्लोक कहा था? ‘सर्वधर्मान् परित्यज मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।’ वह कहकर कालिया का मर्दन किया था। ‘मा शुच’ कहकर। यानी क्या है? कि ‘शोक मत करना,  मेरी शरण में आ जाओ, सब तर्ककुतर्कों को छोड़कर। मैं तुझे सारे पापों से मुक्ति दिला दूँगा।’ यह भगवान कृष्ण का वचन है, स्वयंभगवान का। उस समय मैंने यह बताया था कि इस नामस्पर्श की शुरुआत किसने की? अभी तो इतने सारे Clues दिए। Anybody remembering it? किसी को याद हैं?

कृष्ण के जीवन में नहीं हुई थी शुरुआत, यह शुरुआत हुई थी ‘रामायण’ काल में। किसने की थी? अभी और एक Clue दिया कि ‘रामायण में शुरुआत हुई थी’।

[उपस्थित श्रद्धावान एक एक guess करने लगते हैं ‘हनुमान’ ‘वानर’ ‘भरत’ ‘लक्ष्मण’ ‘जानकी’ ‘बिभीषण’ ‘शबरी’ ‘अहल्या’।]

(हनुमान) हनुमानजी तो लिख रहे थे सीधे-सीधे। हवा में तीर नहीं झाड़ना।

(वानर) नहीं।

भरत ने नहीं, लक्ष्मण ने नहीं, जानकी ने नहीं, बिभिषण ने नहीं, हनुमान ने नहीं, शबरी ने नहीं, अहल्या ने नहीं। कुंभकर्ण, रावण नहीं लिखनेवाले हैं, उनका नाम नहीं लेना। नारद तो थे नहीं उधर। तो कौन? जांबवत ने भी नहीं, बिभिषण ने भी नहीं। अब इतने पात्रों को दूर करने के बाद, कौन रह गया रामायण में? अं, बिभिषण भी नहीं मैंने कहा, जाबवंत भी नहीं, सुग्रीव भी नहीं, वाली भी नहीं। रह कौन गया? दशरथ ने भी नहीं, कौसल्या ने भी नहीं, सुमित्रा ने नहीं, जानकी ने नहीं मैंने कहा, जानकी माता ने नहीं। कैकयी ने तो नहींच नहीं। अभी कौन रह गया? [अंगद?] अंगद ने भी नहीं। [रावण?] रावण ने? अरे वाऽऽऽवाऽऽऽवा....नहीं यार नहीं, एक बार भी वह ‘राम’ नाम लेता ना, तो उसका कल्याण हो जाता। रावण ने भी नहीं।

उत्तर है - ‘मंदोदरी’! जिन लोगों ने ग्रंथ पढ़ा है, वे लोग जानते हैं कि ‘मंदोदरी’ यानी क्या? ‘स्वसंरक्षण की सहज प्रेरणा’ यानी मंदोदरी। मंदोदरी को कोई ‘राम’ नाम लेने की इज़ाजत नहीं थी। वह राम की भक्त थी। रावण उससे बुरी तरह से पेश आता था। वह तो मंदोदरी के सामने ही जानकी से क्या कहता था? सीता से क्या कहता था? ‘अगर तू मेरी हो जाए, तो मंदोदरी को मैं तेरी दासी बना दूँ।’ इतना नीच था। तो ‘राम’ लेने की कैसे मंदोदरी को इज़ाजत मिलती? नहीं।

तो मंदोदरी ने एक बार, जब रावण के दादाजी यानी उसके दादा-ससूर यानी पुलस्त्य ऋषी आये हुए थे, तो उनसे पूछा, ‘मैं रामनाम लेना चाहती हूँ। लेकिन मूँह से उसका उच्चारण करूँ, तो मेरे पति की (रामनाम का उच्चारण तक न करने की) आज्ञा का उल्लंघन होगा, पातिव्रत्य का भंग होगा। राम की मूर्ती भी नहीं रख सकती। तो उसका चरणस्पर्श, पूजन नहीं हो सकता। मैं भगवान का चरणस्पर्श करना चाहती हूँ।’ तब पुलस्त्य ऋषी ने उससे कहा था, ‘बेटी, तू ‘नामस्पर्श’ करना। चरणस्पर्श जितना ही नामस्पर्श बड़ा होता है।’ और पुलस्त्य ऋषि ने (वे ब्रह्मर्षि थे) अपनी इस पौत्रवधू को, यानी बेटे के बेटे की पत्नी को यानी मंदोदरी को सिखाया था - ‘नामस्पर्श’। वही नामस्पर्श मंदोदरी ने बिभिषण को सिखाया। समझे?

So, मंदोदरी क्या है? स्वसंरक्षण की सहज प्रेरणा। Instinct of Self-Protection, i.e. Mandodari. हम सबमें होता है ना| हमारे पास चाहे और कुछ भी ना हो, लेकिन खुद का संरक्षण करने की सहजप्रेरणा होती ही है। और उसी मंदोदरी ने पहले नामस्पर्श किया है। अर्थात् नामस्पर्श की आद्यप्रवर्तक कौन है? मंदोदरी। इसीलिए सिर्फ मंदोदरी को राम के मूल स्वरूप का, जो साकेतनिवासी स्वरूप है, उस स्वरूप का दर्शन हुआ। जब रावण की मृत्यु के बाद वह शोक करने लगी तब। सिर्फ मंदोदरी को। मंदोदरी का उद्धरण उसी रामनाम के नामस्पर्श से हुआ। बिभिषण का उद्धरण उसी नामस्पर्श से, उसी नाम के उच्चारण से हुआ। तो हमारा क्यों नहीं हो सकता? So, यह कथा मैंने तब बतायी थी कि कैसे मंदोदरी ने पहली बार नामस्पर्श का आरंभ किया था।

तब मैंने बताया कि नाम को स्पर्श कैसे करना है, यह बाद में बताऊँगा। उसे अठारह साल हो गये। लेकिन उचित समय आने तक राह देखनी ही पड़ती है। तो समझ गए? यह नामस्पर्श किसके साथ जुड़ा हुआ है?  हमारे स्वसंरक्षण की सहज प्रेरणा के साथ।

That means our instinct of self-protection is directly connected to the नामस्पर्श।

स्वसंरक्षण यानी सिर्फ बॉडी का संरक्षण नहीं। मन का संरक्षण, कार्य का संरक्षण, कुटुंब का संरक्षण, खुद के प्रगति का संरक्षण। हर प्रकार का संरक्षण। तो जान गए, नामस्पर्श से हमें डायरेक्ट क्या मिलता है? चरणस्पर्श मिलता है भगवान का। नामस्पर्श करते हैं इसका मतलब,  भगवान के चरणों को हम लोग अभी छू रहे हैं। और यह किसने सिद्ध कर दिया है? पहले माँ मंदोदरी ने, उसके बाद में भाई बिभिषण ने। ओ.के.?

So, आज से हमलोग करने की कोशिश करेंगे? [करेंगे]

करेंगे? [करेंगे],

करेंगे? [करेंगे],

नक्की? [नक्की],

नक्की? [नक्की],

Love you all !

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Aniruddha Premsagar

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